Motivational Story In Hindi
Motivational Story In Hindi
1. हार गया लेकिन खुद से जित गया
हरीश नाम का एक लड़का था उसको दौड़ने का बहुत शौक था वह कई मैराथन में हिस्सा ले चुका थापरंतु वह किसी भी RACE को पूरा नही करता था|
एक दिन उसने ठान लिया कि चाहे कुछ भी हो जाये वह RACE पूरी जरूर करेगा. अब रेस शुरू हुई हरीश ने भी दौड़ना शुरू किया धीरे सारे धावक आगे निकल रहे थे मगर अब हरीश थक गया था|
वह रुक गया फिर उसने खुद से बोला अगर मैं दौड़ नही सकता तो कम से कम चल तो सकता हु उसने ऐसा ही किया वह धीरे 2 कदम चलने लगा मगर वह आगे जरूर बढ़ रहा था अब वह बहुत ज्यादा थक गया था और नीचे गिर पड़ा उसने खुद को बोला की वह कैसे भी करके आज दौड़ को पूरी जरूर करेगा.
वह जिद करके वापस उठा लड़खड़ाते हुए आगे बढ़ने लगा और अंततः वह रेस पूरी कर गया माना कि वह रेस हार चुका था
लेकिन आज उसका विश्वास चरम पर था क्योंकि आज से पहले RACE को कभी पूरा ही नही कर पाया था
वह जमीन पर पड़ा हुआ था क्योंकि उसके पैरों की मांसपेशियों में बहुत खिंचाव हो चुका था लेकिन आज वह बहुत खुश था
क्योंकि आज वह हार कर भी जीता था|
दोस्तों हम भी तो इस तरह की गलती करते है हमारी LIFE में कभी भी अगर कोई परेशानी होती है तो उस काम को नही करते और छोड़ देते है अगर आप एक STUDENT हो और रोज 10 HR की STUDY करते हो और किसी दिन कोई परेशानी की वजह से आप पढ़ाई नही करते मगर आपको भले ही 5 HR मिले पढ़ना जरूर चाहिए|
हरीश की कहानी से हमे यही सीखने को मिलता है कि अगर हम लगातार आगे बढ़ते रहे तो एक दिन हम हारकर भी जीत
जाएंगे छोटे छोटे कदम बढ़ाते जाओ और आगे बढ़ते जाओ यही सफलता का नियम है.
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2. जीवन का दर्पण
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एक दिन जब ऑफिस के सभी कर्मचारी ऑफिस पहुँचे, तो उन्हें दरवाजे पर एक पर्ची चिपकी हुई मिली. उस पर लिखा था – “कल उस इंसान की मौत हो गई, जो कंपनी में आपकी प्रगति में बाधक था. उसे श्रद्धांजली देने के लिए सेमिनार हाल में एक सभा आयोजित की गई है. ठीक ११ बजे श्रद्धांजली सभा में सबका उपस्थित होना अपेक्षित है.”
अपने एक सहकर्मी की मौत की खबर पढ़कर पहले तो सभी दु:खी हुए. लेकिन कुछ देर बाद उन सबमें ये जिज्ञासा उत्पन्न होने लगी कि आखिर वह कौन था, जो उनकी और कंपनी की प्रगति में बाधक था?
११ बजे सेमिनार हाल में कर्मचारियों का आना प्रारंभ हो गया. धीरे-धीरे वहाँ इतनी भीड़ जमा हो गई कि उसे नियंत्रित करने के लिए सिक्यूरिटी गार्ड की व्यवस्था करनी पड़ी. लोगों का आना लगातार जारी था. जैसे-जैसे लोगों की भीड़ बढ़ती जा रही थी, सेमिनार हॉल में हलचल भी बढ़ती जा रही थी. सबके दिमाग में बस यही चल रहा था :
“आखिर वो कौन था, जो कंपनी में मेरी प्रगति पर लगाम लगाने पर तुला हुआ था? चलो, एक तरह से ये अच्छा ही हुआ कि वो मर गया.”
जैसे ही श्रद्धांजली सभा प्रारंभ हुई, एक-एक करके सभी उत्सुक और जिज्ञासु कर्मचारी कफ़न के पास जाने लगे. करीब पहुँचकर जैसे ही वे कफ़न के अंदर झांकते, उनका चेहरा फक्क पड़ जाता. मानो उन्हें सदमा सा लग गया हो.
उस कफ़न के अंदर एक दर्पण रखा हुआ था. जो भी उसमें झांककर देखता, उसे उसमें अपना ही अक्स नज़र आता. उस दर्पण पर एक पर्ची भी चिपकी हुई थी, जिस पर कुछ ऐसा लिखा था जो सबकी आत्मा को झकझोर रहा था:
”केवल एक ही इंसान आपकी प्रगति में बाधक है और वो आप खुद है. आप ही वो इंसान है, जो अपने जीवन में क्रांति उत्पन्न कर सकते है. आप ही वो इंसान है, जो अपनी ख़ुशी, अपनी समझ और अपनी सफलता को प्रभावित कर सकते है.
आप ही वो इंसान हैं, जो अपनी खुद की मदद कर सकते है. आपका जीवन नहीं बदलता, जब आपका बॉस बदल जाता है; आपका जीवन नहीं बदलता, जब आपके दोस्त बदल जाते है; आपका जीवन नहीं बदलता, जब आपके पार्टनर या साथी बदल जाते है; आपका जीवन तब बदलता है, जब “आप खुद” बदल जाते है.
जब आप अपने खुद के विश्वास की सीमा को लांघकर उसके पार जाते है, जब आप ये समझ जाते है कि आप और सिर्फ आप अपने जीवन के लिए जिम्मेदार है, तब आपका जीवन बदल जाता है. सबसे महत्वपूर्ण रिश्ता जो आपका किसी के साथ है, वो आपका खुद से है.
प्रेरणादायक कहानी क्या है?
पाप का गुरु कौन ? एक पंडित जी कई वर्षों तक काशी में शास्त्रों का अध्ययन करने के बाद गांव लौटे। पूरे गांव में शोहरत हुई कि काशी से शिक्षित होकर आए हैं और धर्म से जुड़े किसी भी पहेली को सुलझा सकते हैं।
3. हमेशा सीखते रहो.
एक बार गाँव के दो व्यक्तियों ने शहर जाकर पैसे कमाने का निर्णय लिया. शहर जाकर कुछ महीने इधर-उधर छोटा-मोटा काम कर दोनों ने कुछ पैसे जमा किये. फिर उन पैसों से अपना-अपना व्यवसाय प्रारंभ किया. दोनों का व्यवसाय चल पड़ा. दो साल में ही दोनों ने अच्छी ख़ासी तरक्की कर ली.
व्यवसाय को फलता-फूलता देख पहले व्यक्ति ने सोचा कि अब तो मेरे काम चल पड़ा है. अब तो मैं तरक्की की सीढ़ियाँ चढ़ता चला जाऊंगा. लेकिन उसकी सोच के विपरीत व्यापारिक उतार-चढ़ाव के कारण उसे उस साल अत्यधिक घाटा हुआ.
अब तक आसमान में उड़ रहा वह व्यक्ति यथार्थ के धरातल पर आ गिरा. वह उन कारणों को तलाशने लगा, जिनकी वजह से उसका व्यापार बाज़ार की मार नहीं सह पाया.
सबने पहले उसने उस दूसरे व्यक्ति के व्यवसाय की स्थिति का पता लगाया, जिसने उसके साथ ही व्यापार आरंभ किया था. वह यह जानकर हैरान रह गया कि इस उतार-चढ़ाव और मंदी के दौर में भी उसका व्यवसाय मुनाफ़े में है. उसने तुरंत उसके पास जाकर इसका कारण जानने का निर्णय लिया.
अगले ही दिन वह दूसरे व्यक्ति के पास पहुँचा. दूसरे व्यक्ति ने उसका खूब आदर-सत्कार किया और उसके आने का कारण पूछा. तब पहला व्यक्ति बोला, “दोस्त! इस वर्ष मेरा व्यवसाय बाज़ार की मार नहीं झेल पाया. बहुत घाटा झेलना पड़ा. तुम भी तो इसी व्यवसाय में हो. त्तुमने ऐसा क्या किया कि इस उतार-चढ़ाव के दौर में भी तुमने मुनाफ़ा कमाया?”
यह बात सुन दूसरा व्यक्ति बोला, “भाई! मैं तो बस सीखता जा रहा हूँ, अपनी गलती से भी और साथ ही दूसरों की गलतियों से भी. जो समस्या सामने आती है, उसमें से भी सीख लेता हूँ.
इसलिए जब दोबारा वैसी समस्या सामने आती है, तो उसका सामना अच्छे से कर पाता हूँ और उसके कारण मुझे नुकसान नहीं उठाना पड़ता. बस ये सीखने की प्रवृत्ति ही है, जो मुझे जीवन में आगे बढ़ाती जा रही है.”
दूसरे व्यक्ति की बात सुनकर पहले व्यक्ति को अपनी भूल का अहसास हुआ. सफ़लता के मद में वो अति-आत्मविश्वास से भर उठा था और सीखना छोड़ दिया था. वह यह प्रण कर वापस लौटा कि कभी सीखना नहीं छोड़ेगा. उसके बाद उसने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और तरक्की की सीढ़ियाँ चढ़ता चला गया.
सीख
दोस्तों, जीवन में कामयाब होना है, तो इसे पाठशाला मान हर पल सीखते रहिये. यहाँ नित नए परिवर्तन और नए विकास होते रहते हैं. यदि हम स्वयं को सर्वज्ञाता समझने की भूल करेंगे, तो जीवन की दौड़ में पिछड़ जायेंगे. क्योंकि इस दौड़ में जीतता वही है, जो लगातार दौड़ता रहता है. जिसें दौड़ना छोड़ दिया, उसकी हार निश्चित है. इसलिए सीखने की ललक खुद में बनाये रखें, फिर कोई बदलाव, कोई उतार-चढ़ाव आपको आगे बढ़ने से नहीं रोक सकता.
4. जो चाहोगे सो पाहोगे
एक साधु घाट किनारे अपना डेरा डाले हुए था. वहाँ वह धुनी रमा कर दिन भर बैठा रहता और बीच-बीच में ऊँची आवाज़ में चिल्लाता, “जो चाहोगे सो पाओगे!”
उस रास्ते से गुजरने वाले लोग उसे पागल समझते थे. वे उसकी बात सुनकर अनुसना कर देते और जो सुनते, वे उस पर हँसते थे.
एक दिन एक बेरोजगार युवक उस रास्ते से गुजर रहा था. साधु की चिल्लाने की आवाज़ उसके कानों में भी पड़ी – “जो चाहोगे सो पाओगे!” “जो चाहोगे सो पाओगे!”.
ये वाक्य सुनकर वह युवक साधु के पास आ गया और उससे पूछने लगा, “बाबा! आप बहुत देर से जो चाहोगे सो पाओगे चिल्ला रहे हो. क्या आप सच में मुझे वो दे सकते हो, जो मैं पाना चाहता हूँ?”
साधु बोला, “हाँ बेटा, लेकिन पहले तुम मुझे ये बताओ कि तुम पाना क्या चाहते हो?”
“बाबा! मैं चाहता हूँ कि एक दिन मैं हीरों का बहुत बड़ा व्यापारी बनूँ. क्या आप मेरी ये इच्छा पूरी कर सकते हैं?” युवक बोला.
“बिल्कुल बेटा! मैं तुम्हें एक हीरा और एक मोती देता हूँ, उससे तुम जितने चाहे हीरे-मोती बना लेना.” साधु बोला. साधु की बात सुनकर युवक की आँखों में आशा की ज्योति चमक उठी.
फिर साधु ने उसे अपनी दोनों हथेलियाँ आगे बढ़ाने को कहा. युवक ने अपनी हथेलियाँ साधु के सामने कर दी. साधु ने पहले उसकी एक हथेली पर अपना हाथ रखा और बोला, “बेटा, ये इस दुनिया का सबसे अनमोल हीरा है.
इसे ‘समय’ कहते हैं. इसे जोर से अपनी मुठ्ठी में जकड़ लो. इसके द्वारा तुम जितने चाहे उतने हीरे बना सकते हो. इसे कभी अपने हाथ से निकलने मत देना.”
फिर साधु ने अपना दूसरा हाथ युवक की दूसरी हथेली पर रखकर कहा, “बेटा, ये दुनिया का सबसे कीमती मोती है. इसे ‘धैर्य’ कहते हैं
जब किसी कार्य में समय लगाने के बाद भी वांछित परिणाम प्राप्त ना हो, तो इस धैर्य नामक मोती को धारण कर लेना. यदि यह मोती तुम्हारे पास है, तो तुम दुनिया में जो चाहो, वो हासिल कर सकते हो.”
युवक ने ध्यान से साधु की बात सुनी और उन्हें धन्यवाद कर वहाँ से चल पड़ा. उसे सफ़लता प्राप्ति के दो गुरुमंत्र मिल गए थे. उसने निश्चय किया कि वह कभी अपना समय व्यर्थ नहीं गंवायेगा और सदा धैर्य से काम लेगा.
कुछ समय बाद उसने हीरे के एक बड़े व्यापारी के यहाँ काम करना प्रारंभ किया. कुछ वर्षों तक वह दिल लगाकर व्यवसाय का हर गुर सीखता रहा और एक दिन अपनी मेहनत और लगन से अपना सपना साकार करते हुए हीरे का बहुत बड़ा व्यापारी बना.
सीख
लक्ष्य प्राप्ति के लिए सदा ‘समय’ और ‘धैर्य’ नाम के हीरे-मोती अपने साथ रखें. अपना समय कभी व्यर्थ ना जाने दें और कठिन समय में धैर्य का दामन ना छोड़ें. सफ़लता अवश्य प्राप्त होगी.
5. अपनी क्षमता पहचानो
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एक गाँव में एक आलसी आदमी रहता था. वह कुछ काम-धाम नहीं करता था. बस दिन भर निठल्ला बैठकर सोचता रहता था कि किसी तरह कुछ खाने को मिल जाये.
एक दिन वह यूं ही घूमते-घूमते आम के एक बाग़ में पहुँच गया. वहाँ रसीले आमों से लदे कई पेड़ थे. रसीले आम देख उसके मुँह में पानी आ गया और आम तोड़ने वह एक पेड़ पर चढ़ गया. लेकिन जैसे ही वह पेड़ पर चढ़ा, बाग़ का मालिक वहाँ आ पहुँचा.
बाग़ के मालिक को देख आलसी आदमी डर गया और जैसे-तैसे पेड़ से उतरकर वहाँ से भाग खड़ा हुआ. भागते-भागते वह गाँव में बाहर स्थित जंगल में जा पहुँचा. वह बुरी तरह से थक गया था. इसलिए एक पेड़ के नीचे बैठकर सुस्ताने लगा.
तभी उसकी नज़र एक लोमड़ी (FOX) पर पड़ी. उस लोमड़ी की एक टांग टूटी हुई थी और वह लंगड़ाकर चल रही थी. लोमड़ी को देख आलसी आदमी सोचने लगा कि ऐसी हालत में भी इस जंगली जानवरों से भरे जंगल में ये लोमड़ी बच कैसे गई? इसका अब तक शिकार कैसे नहीं हुआ?
जिज्ञासा में वह एक पेड़ पर चढ़ गया और वहाँ बैठकर देखने लगा कि अब इस लोमड़ी के साथ आगे क्या होगा?
कुछ ही पल बीते थे कि पूरा जंगल शेर (LION) की भयंकर दहाड़ से गूंज उठा. जिसे सुनकर सारे जानवर डरकर भागने लगे. लेकिन लोमड़ी अपनी टूटी टांग के साथ भाग नहीं सकती थी. वह वहीं खड़ी रही.
शेर लोमड़ी के पास आने लगा. आलसी आदमी ने सोचा कि अब शेर लोमड़ी को मारकर खा जायेगा. लेकिन आगे जो हुआ, वह कुछ अजीब था. शेर लोमड़ी के पास पहुँचकर खड़ा हो गया. उसके मुँह में मांस का एक टुकड़ा था, जिसे उसने लोमड़ी के सामने गिरा दिया. लोमड़ी इत्मिनान से मांस के उस टुकड़े को खाने लगी. थोड़ी देर बाद शेर वहाँ से चला गया.
यह घटना देख आलसी आदमी सोचने लगा कि भगवान सच में सर्वेसर्वा है. उसने धरती के समस्त प्राणियों के लिए, चाहे वह जानवर हो या इंसान, खाने-पीने का प्रबंध कर रखा है. वह अपने घर लौट आया.
घर आकर वह २-३ दिन तक बिस्तर पर लेटकर प्रतीक्षा करने लगा कि जैसे भगवान ने शेर के द्वारा लोमड़ी के लिए भोजन भिजवाया था. वैसे ही उसके लिए भी कोई न कोई खाने-पीने का सामान ले आएगा.
लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. भूख से उसकी हालात ख़राब होने लगी. आख़िरकार उसे घर से बाहर निकलना ही पड़ा. घर के बाहर उसे एक पेड़ के नीचे बैठे हुए बाबा दिखाए पड़े. वह उनके पास गया और जंगल का सारा वृतांत सुनाते हुए वह बोला, “बाबा जी!
भगवान मेरे साथ ऐसा क्यों कर रहे हैं? उनके पास जानवरों के लिए भोजन का प्रबंध है. लेकिन इंसानों के लिए नहीं.”
बाबा जी ने उत्तर दिया, “बेटा! ऐसी बात नहीं है. भगवान के पास सारे प्रबंध है. दूसरों की तरह तुम्हारे लिए भी. लेकिन बात यह है कि वे तुम्हें लोमड़ी नहीं शेर बनाना चाहते हैं.”
सीख
हम सबके भीतर क्षमताओं का असीम भंडार है. बस अपनी अज्ञानतावश हम उन्हें पहचान नहीं पाते और स्वयं को कमतर समझकर दूसरों की सहायता की प्रतीक्षा करते रहते हैं. स्वयं की क्षमता पहचानिए. दूसरों की सहायता की प्रतीक्षा मत करिए. इतने सक्षम बनिए कि आप दूसरों की सहायता कर सकें.
6.किसान की घडी
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एक दिन की बात है. एक किसान अपने खेत के पास स्थित अनाज की कोठी में काम कर रहा था. काम के दौरान उसकी घड़ी कहीं खो गई. वह घड़ी उसके पिता द्वारा उसे उपहार में दी गई थी. इस कारण उससे उसका भावनात्मक लगाव था.
उसने वह घड़ी ढूंढने की बहुत कोशिश की. कोठी का हर कोना छान मारा. लेकिन घड़ी नहीं मिली. हताश होकर वह कोठी से बाहर आ गया. वहाँ उसने देखा कि कुछ बच्चे खेल रहे हैं.
उसने बच्चों को पास बुलाकर उन्हें अपने पिता की घड़ी खोजने का काम सौंपा. घड़ी ढूंढ निकालने वाले को ईनाम देने की घोषणा भी की. ईनाम के लालच में बच्चे तुरंत मान गए.
कोठी के अंदर जाकर बच्चे घड़ी की खोज में लग गए. इधर-उधर, यहाँ-वहाँ, हर जगह खोजने पर भी घड़ी नहीं मिल पाई. बच्चे थक गए और उन्होंने हार मान ली.
किसान ने अब घड़ी मिलने की आस खो दी. बच्चों के जाने के बाद वह कोठी में उदास बैठा था. तभी एक बच्चा वापस आया और किसान से बोला कि वह एक बार फिर से घड़ी ढूंढने की कोशिश करना चाहता था. किसान ने हामी भर दी.
बच्चा कोठी के भीतर गया और कुछ ही देर में बाहर आ गया. उसके हाथ में किसान की घड़ी थी. जब किसान ने वह घड़ी देखी, तो बहुत ख़ुश हुआ. उसे आश्चर्य हुआ कि जिस घड़ी को ढूंढने में सब नाकामयाब रहे, उसे उस बच्चे ने कैसे ढूंढ निकाला?
पूछने पर बच्चे ने बताया कि कोठी के भीतर जाकर वह चुपचाप एक जगह खड़ा हो गया और सुनने लगा. शांति में उसे घड़ी की टिक-टिक की आवाज़ सुनाई पड़ी और उस आवाज़ की दिशा में खोजने पर उसे वह घड़ी मिल गई.
किसान ने बच्चे को शाबासी दी और ईनाम देकर विदा किया.
सीख – शांति हमारे मन और मस्तिष्क को एकाग्र करती है और यह एकाग्र मन:स्थिति जीवन की दिशा निर्धारित करने में सहायक है. इसलिए दिनभर में कुछ समय हमें अवश्य निकलना चाहिए, जब हम शांति से बैठकर मनन कर सकें. अन्यथा शोर-गुल भरी इस दुनिया में हम उलझ कर रह जायेंगे
हम कभी न खुद को जान पायेंगे न अपने मन को. बस दुनिया की भेड़ चाल में चलते चले जायेंगे. जब आँख खुलगी, तो बस पछतावा होगा कि जीवन की ये दिशा हमने कैसे निर्धारित कर ली? हम चाहते तो कुछ और थे. जबकि वास्तव में हमने तो वही किया, जो दुनिया ने कहा. अपने मन की बात सुनने का तो हमने समय ही नहीं निकाला.
7. फासी की सजा
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एक बार की बात है. यूनान (GREECE) के सम्राट (KING) किसी बात पर अपने वज़ीर से नाराज़ हो गये. नाराज़गी में उन्होंने वजीर के लिए फांसी की सजा का एलान कर दिया. फांसी का समय शाम के ६ बजे मुकर्रर किया गया.
फांसी की सजा दिए जाते समय वज़ीर दरबार में उपस्थित नहीं था. सम्राट ने सैनिकों को आदेश दिया, “जाओ, जाकर वज़ीर को बता दो कि शाम को ठीक ६ बजे उसे फांसी पर लटका दिया जायेगा.”
सम्राट का आदेश मान सैनिक की एक टुकड़ी वज़ीर के घर पहुँची. उसके घर को चारों ओर से घेर लिया गया. कुछ सैनिक घर के अंदर गए. अंदर जाने पर उन्होंने देखा कि वहाँ तो जश्न का माहौल है
उस दिन वज़ीर का जन्मदिन था. उसके घर पर रिश्तेदारों और दोस्तों की चहल-पहल थी. संगीत बज रहा है. नाच-गाना चल रहा था. पूरे घर में पकवान की ख़ुशबू फ़ैल रही थी. कुल मिलाकर वहाँ का माहौल बड़ा ख़ुशनुमा था.
सैनिकों ने भरी महफ़िल में एलान कर वज़ीर को फांसी की सजा के बारे में बताया. यह भी बताया कि फांसी शाम ६ बजे दी जाएगी. यह एलान सुनकर वहाँ मौजूद हर शख्स हैरान रह गया. फ़ौरन संगीत और नाच-गाना बंद कर दिया गया. रिश्तेदार, दोस्त और परिवारजन उदास हो गए.
तभी कमरे में छाई ख़ामोशी में वज़ीर की आवाज़ गूंजी, “ऊपर वाले का लाख-लाख शुक्रिया कि उसने फांसी के लिए शाम ६ बजे तक का वक़्त दे दिया. तब तक हम सब जश्न मना सकते हैं.”
वज़ीर की बात सुनकर दोस्तों, रिश्तेदारों और परिवारज़नों ने कहा, “कैसी बात कर रहे हो? फांसी की सजा सुनाई गई है तुम्हें और तुम जश्न मनाना चाहते हो.”
वजीर ने किसी तरह सबको समझाया और जश्न फिर से शुरू करवाया. दोस्त उदास थे. लेकिन वज़ीर की ख़ुशी के लिए जश्न में शामिल हो गए.
यह ख़बर सैनिकों द्वारा सम्राट तक पहुँचाई गई. सम्राट पूरा माज़रा जानने वज़ीर के घर पहुँच गया. वहाँ पहुँचकर जब उसने सबको जश्न मानते हुए देखा, तो वह भी दंग रह गया. उसने वज़ीर से कहा, “तुम पागल हो गये हो क्या? शाम ६ बजे तुम्हें फांसी पर लटका दिया जायेगा और तुम जश्न मना रहे हो.“
वज़ीर बड़े ही अदब से बोला, “हुज़ूर! आपका बहुत-बहुत शुक्रिया कि आपने फांसी का वक़्त शाम ६ बजे मुकर्रर किया. इस तरह मुझे शाम ६ बजे तक का वक़्त मिल सका. यदि आप मुझे ये वक़्त न देते, तो मैं अपने परिवार, दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ जश्न कैसे मना पाता? फांसी पर लटकने के पहले मेरे पास शाम तक का वक़्त है. ये मैं क्यों ज़ाया करूं? मेरे पास जितना भी वक़्त है, उसे मैं ख़ुशी-ख़ुशी गुज़ारना चाहता हूँ.”
ये बात सुनकर राजा ने वज़ीर को गले लगा लिया और कहा, “जिस इंसान को वक़्त की कदर है. जो ज़िंदगी का हर लम्हा ख़ुशी-ख़ुशी गुजारना चाहता है. उसे मौत कैसे दी जा सकती हैं? उसे जीने का पूरा हक है. तुम्हारी बातों ने हमारा दिल ख़ुश कर दिया. तुम्हारी फांसी की सजा माफ़ की जाती है.”
सीख
ज़िंदगी ख़ूबसूरत है. इसका हर लम्हा ख़ुशी के साथ गुजारें. ये ज़रूर है कि ज़िंदगी में कई बार मुश्किलों भरा वक़्त सामने आ खड़ा होता है और हम परेशान हो जाते हैं. ऐसे में हम ज़िंदगी जीना ही छोड़ देते हैं. मुश्किलों से हारे नहीं, उसका सामना करें और ख़ुशी के साथ करें. जो भी समय आपके पास है, उसका पूरा सदुपयोग करें. ये ज़िंदगी बार-बार नहीं मिलने वाली. इसे खुलकर जियें.
8. अपनी पहेचन कैसे बनाये
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एक प्रसिद्ध लेखक पत्रकार और राजनयिक पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ जो बेहद ही हंसमुख स्वभाव और आकर्षक व्यक्तित्व के धनी है। उनकी पत्रकारिता देश ही नहीं अपितु विदेश में भी प्रसिद्ध है। उन्होंने वैसे जगह पर भी पत्रकारिता की है जहां अन्य पत्रकारों के लिए संभव नहीं है।
उनकी हसमुख प्रवृत्ति और हाजिर जवाब का कोई सानी नहीं है। एक समय की बात है पुष्पेंद्र एक सभा को संबोधित कर रहे थे , सभा में जनसैलाब उमड़ा था , लोग उन्हें सुनने के लिए दूर-दूर से आए हुए थे।
जब वह अपना भाषण समाप्त कर बाहर निकले , तब उनकी ओर एक भीड़ ऑटोग्राफ के लिए बढ़ी। पुष्पेंद्र उनसे बातें करते हुए ऑटोग्राफ दे रहे थे। तभी एक नौजवान उस भीड़ से पुष्पेंद्र के सामने आया उस नौजवान ने उनसे कहा -” मैं आपका बहुत बड़ा श्रोता और प्रशंसक हूं , मैं साहित्य प्रेमी हूं , जिसके कारण मुझे आपकी लेखनी बेहद रुचिकर लगती है।
इस कारण आप मेरे सबसे प्रिय लेखक भी हैं। मैंने आपकी सभी पुस्तकें पढ़ी है और आपके व्यक्तित्व को अपने जीवन में उतारना चाहता हूं। किंतु मैं ऐसा क्या करूं जिससे मैं एक अलग पहचान बना सकूं। आपकी तरह ख्याति पा सकूं।”
ऐसा कहते हुए उस नौजवान ने अपनी पुस्तिका ऑटोग्राफ के लिए पुष्पेंद्र की ओर बढ़ाई।
पुष्पेंद्र ने उस समय कुछ नहीं कहा और उसकी पुस्तिका में कुछ शब्द लिखें और ऑटोग्राफ देकर उस नौजवान को पुस्तिका वापस कर दी।
इस पुस्तिका में यह लिखा हुआ था –
” आप अपना समय स्वयं को पहचान दिलाने के लिए लगाएं ,
किसी दूसरे के ऑटोग्राफ से आपकी पहचान नहीं बनेगी।
जो समय आप दूसरे लोगों को लिए देते हैं
वह समय आप स्वयं के लिए दें। “
नौजवान इस जवाब को पढ़कर बेहद प्रसन्न हुआ और उसने पुष्पेंद्र को धन्यवाद कहा कि –
“मैं आपका यह वचन जीवन भर याद रखूंगा और अपनी एक अलग पहचान बना कर दिखाऊंगा। “
पुष्पेंद्र ने उस नौजवान को धन्यवाद दिया और सफलता के लिए ढेर सारी शुभकामनाएं भी दी।
कहानी की शिक्षा
हम इस हिंदी प्रेरक कहानी से क्या सीखते हैं? दूसरों का अनुसरण करने के बजाय अपनी खुद की अद्वितीय व्यक्तित्व और पहचान बनाएं।
फॉलो करने वाले को हमेशा टॉपर की छाया में रहना होगा। जीवन में सबसे बड़ी चीज सम्मान और अद्वितीयता है जिसके लिए लोग आपको याद करते हैं। तो फॉलो करना बंद करो। अनुसरणकर्ता बनाना प्रारंभ करें.
Motivational Story In Hindi
9. कोई छोटा बड़ा नहीं
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एक छोटे से कस्बे में शंभू शिल्पकार रहता था। वह पहाड़ों से बड़े-बड़े पत्थर तोड़कर लाता और उसे आकार देकर मूर्तियां बनाता। इस रोजगार में मेहनत बहुत ज्यादा थी , आमदनी कम।
दिन भर धूप पसीने में काम करते हुए शंभू पत्थर तोड़ता। यह काम उसके पूर्वज भी किया करते थे।
शंभू काम करते हुए सोचता है , यह छोटा-मोटा काम करने से क्या फायदा? ठीक से दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं होती। मैं बड़ा आदमी बन जाऊं तो काम भी ज्यादा नहीं करना होगा और बैठकर आराम से ऐस मौज करूंगा।
एक रोज वह ऐसे नेता को देखता है , जिसके आगे पीछे हमेशा भीड़ रहती है। उसको हाथ जोड़कर प्रणाम करने वाले सैकड़ों लोग खड़ी रहती हैं। शंभू ने नेता बनने की ठान ली , कुछ दिनों में वह नेता बन गया।
नेता बनने के बाद जब वह एक रैली कर रहा था , धूप काफी तीव्र थी। धूप की गर्मी वह सहन नहीं कर पाया और बेहोश होकर वहीं गिर गया।
होश आने पर उसने पाया वह बिस्तर पर लेटा हुआ है।
बिस्तर पर लेटे लेटे वह सोचने लगा कि नेता से बलवान वह सूर्य है जिसकी गर्मी कोई सहन नहीं कर पाता। मुझे अब सूर्य बनना है। कुछ दिनों बाद वह सूर्य भी बन गया।
शंभू अब गर्व से चमकता रहता और भीषण गर्मी उत्पन्न करता। तभी उसने देखा एक मजदूर खेत में आराम से काम कर रहा है। उसने गर्मी और बढ़ाई मगर मजदूर पर कोई फर्क नहीं पड़ा।
विचार किया तो उसे मालूम हुआ। ठंडी-ठंडी हवा पृथ्वी पर बह रही है , तब शभु ने विचार किया। हवा बनकर मैं और शक्तिशाली बन जाऊंगा , कुछ दिनों बाद वह हवा बन गया।
हवा बनकर वह इतराता-इठलाता इधर-उधर घूमने लगा।
अचानक उसके सामने विकराल पर्वत आ गया , जिसके पार वह नहीं जा सका। तब उसने सोचा मैं इससे भी बड़ा पर्वत बनकर रहूंगा। कुछ समय बाद वह विशालकाय पर्वत बन गया।
अब उसे अपने आकार और शक्तिशाली होने का घमंड हो गया।
कुछ दिनों बाद उसे छेनी-हथौड़ी की आवाज परेशान करने लगी।
वह काफी परेशान हो गया , उसकी आवाज इतनी कर्कश थी जो उसके शरीर को तोड़े जा रही थी।
आंख खुली तो उसने देखा एक शिल्पकार उसके पर्वत को तोड़ रहा है।
लेकिन अब वह मजदूर नहीं बनना चाहता था। वह काफी परेशान था , नींद खुली तो उसने आईने में पाया – वह जो विशाल पर्वत को भी तोड़ने का साहस रखता है वह तो स्वयं वही है।
10. लगन का फल
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उस बालक का मन विद्यालय में नहीं लगता था। विद्यालय में वह और छात्रों के द्वारा मंदबुद्धि कहलाता था। कक्षा में भी वह बालक सबसे पीछे रहता था , उसके अध्यापक भी उससे नाराज़ रहते थे। क्योकि उसकी बुद्धि का स्तर औसत से भी नीचे था।
कक्षा में भी उसका प्रदर्शन हमेशा निराशाजनक ही होता था। अपने दोस्तों एवं सहपाठियो के बीच वह उपहास का विषय था। विद्यालय में वह जब की प्रवेश करता उस बालक पर चारों ओर से व्यंग और बाणो की बौछार सी होने लगती। इन सब बातों से परेशान हो कर , तंग आकर विद्यालय जाना ही छोड़ दिया।
एक दिन वह बालक मार्ग पर यूँ ही चलता हुआ जा रहा था। चलते हुए उसे ज़ोरो की प्यास लगी, वह इधर – उधर अपनी प्यास बुझाने के लिए पानी तलाशने लगा। अंत में उसे एक कुआँ दिखाई दिया , वे वहाँ गया और अपनी प्यास बुझाई।
Motivational Story In Hindi
वह चलता – चलता काफी थक गया था , इसीलिए पानी पीने के बाद वही बैठ गया , तभी उसकी नज़र पत्थर पर पड़े , उस निशान पर गयी. जिस पर बार – बार कुँए से पानी खींचने के कारण रस्सी के निशान पड़ गए थे।
वह मन ही मन सोचने लगा की जब बार – बार कुँए से पानी खींचने से पत्थर पर निशान पड़ सकते है तो निरंतर अभ्यास से मुझे भी विद्या आ सकती सकती है।
उसने अपने इस विचार को गांठ बांध लिया और पुनः विद्यालय जाना शुरू कर दिया। उसकी लगन देख कर अध्यापको ने भी उसका भरपूर सहयोग किया।
उसने मन लगा कर कठिन परिश्रम किया। कुछ सालो बाद यही बालक महान विद्वान वरदराज के रूप में विख्यात हुए , जिन्होंने संस्कृत में मुग्धबोध और लघुसिद्धांत कौमुदी जैसे ग्रंथो की रचना की।
इस कहानी का अर्थ – अगर धैर्य , लगन और परिश्रम से कार्य किया जाये तो उन पर विजय प्राप्त कर अपने लक्ष्यों की प्राप्ति की जा सकती है। सामान्यता यह ह
अंत में, हिंदी में यह प्रेरक कहानी एक महान अनुस्मारक है कि कुछ भी संभव है अगर हम इसे अपना दिमाग लगाते हैं और कभी हार नहीं मानते हैं। हमें हमेशा अपना सर्वश्रेष्ठ बनने का प्रयास करना चाहिए और खुद को नई सीमाओं तक धकेलना चाहिए। आइए हम इस प्रेरणादायी कहानियों के ज्ञान के इन शब्दों को याद रखें और अपनी यात्रा जारी रखते हुए हमें सशक्त बनाने के लिए उनका उपयोग करें। Motivational Story In Hindi Motivational Story In Hindi,Motivational Story In Hindi,Motivational Story In Hindi,Motivational Story In Hindi,Motivational Story In Hindi, Motivational Story In Hindi,Motivational Story In Hindi, Motivational Story In Hindi, Motivational Story In Hindi, Motivational Story In Hindi, Motivational Story In Hindi